Isro Reusable launch Vehicle : क्या है इसरो का RLV LEX Autonomous जिसका किया सफल परीक्षण

 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान विभाग (ISRO) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की, ISRO ने किया री-यूज़एबल लांच वेहिकल का किया सफल परीक्षण

ISRO ने किया री-यूज़एबल लांच वेहिकल का किया सफल परीक्षण
Photo: isro social media 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान विभाग (isro) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और कीर्तिमान स्थापित कर दिया है इसरो ने री- यूजेबल लांच वेहिकल का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। यह परीक्षण सफल होने के बाद अब स्पेस सेक्टर में होने वाले खर्चो में कमी आएगी।

क्या है ISRO का RLV LEX ऑटोनोमस री- यूजेबल लांच वेहिकल

ISRO जब भी अंतरिक्ष मे कोई भी सेटेलाइट भेजता है तब वह सेटेलाइट को अंतरिक्ष मे भेजने के लिए राकेट का इस्तेमाल करता है जिसके हेड पर सेटेलाइट को फिक्स करके पृथ्वी से दूर अंतरिक्ष में जाता है, लेकिन इस काम मे जो रॉकेट का इस्तेमाल किया जाता है वह वापस लौटकर पृथ्वी पर कभी नही आता है वह रॉकेट अंतरिक्ष मे ही रह जाता है। जिससे कारण हर एक बार सेटेलाइट को अंतरिक्ष मे भेजने के लिए नए बूस्टर और राकेट की आवश्यकता पड़ती है जिससे खर्चा और समय दोनों ही ज्यादा लगते है, इसी खर्चे और नए बूस्टर राकेट को बनाने में लगने वाले समय को बचाने के लिए ISRO ने एक नई री- यूजेबल टेक्नोलॉजी को विकसित कर लिया है, जो भविष्य में अपने साथ अंतरिक्ष मे सेटेलाइट को लेकर जाएगा और सेटेलाइट को निर्धारित कक्षा में छोड़कर वापस धरती पर आ जाएगा और फिर उस राकेट का इस्तेमाल दोबारा भविष्य में नए सेटेलाइट को अंतरिक्ष ने पहुचाने के लिए किया जाएगा ।

ISRO के इस प्रयास से अंतरिक्ष मे होने वाले कचरे से छुटकारा मिलेगा, वास्तव में दुनिया का कोई भी देश जब सेटेलाइट को स्पेस में छोड़ता है तब वह अपनी सेटेलाइट के साथ अंतरिक्ष मे जाने अनजाने में बहुत सारा कचरा भी छोड़ देता है , क्योंकि जो भी रॉकेट सेटेलाइट को स्पेस में लेकर जाता है वह राकेट भी स्पेस में ही रह जाता है जिसका उपयोग कुछ नही होता है वर्तमान समय मे दुनिया के कई देश इस अंतरिक्ष मे होने वाले कचरे से बहुत ज्यादा चिंतित है। रीयूजएबल लॉच सिस्टम की मदद से अंतरिक्ष मे होने वाले कचरे को कम किया जा सकेगा।

चिनूक हेलीकॉप्टर की मदद से परीक्षण किया गया

ISRO ने सबसे पहले परीक्षण के लिए RLVS ऑटोनोमस री- यूज़एबल लांच व्हीकल का प्रोटोटाइप बनाया, और उस प्रोटोटाइप लांच व्हीकल को चिनूक हेलीकॉप्टर की सहायता से आसमान में लगभग 5 KM की ऊँचाई पर ले जाया गया, फिर वहा से RLVS को नीचे छोड दिया गया ।
इसे इतनी ऊंचाई से इसलिए छोड़ा गया कि राकेट लांच के समय बूस्टर राकेट इतनी ही उचाई पर जाकर राकेट से अलग होते है और वे अंतरिक्ष मे ही रह जाते है, इसरो के परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यही था कि क्या हम लगभग 5 KM की ऊंचाई से गिरने वाले राकेट के बूस्टर की सेफ लैंडिंग कर सकते है कि नही।
इसरो का प्रयोग सफल रहा और अब वह आगे होने वाली लॉन्चिंग ने री-यूज़एबल लांच वेहिकल का प्रयोग करेगा ,इसके प्रयोग से लॉन्चिंग में होने वाले खर्चो में काफी हद तक कमी आएगी और स्पेस में कचरा भी नही फैलेगा।

प्रोटोटाइप क्या होता है?

जब भी किसी उपकरण का निर्माण होता है ,तब उस उपकरण को चेक करने के लिए उसका एक डेमो या उसी तरह का आकार में छोटा उपकरण तैयार किया जाता है, और उसी पर टेस्टिंग का काम किया जाता है, अगर टेस्टिंग सफल होती है तब उस प्रोटोटाइप की मदद से नए उपकरण को बनाया जाता है।


 RLV LEX कौन-कौन सी एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस है-

  • सटीक नेविगेशन
  • नाविक (NaviK) रिसीवर
  • हार्डवेयर और साफ्टवेअर
  • स्वदेशी लैंडिंग गियर
  • स्यूडो लाइट सिस्टम
  • ऐरो फिल हनी-कॉम्ब फिन
  • का- बैंड राडार अल्टीमीटर
  • पैराशूट ब्रेक सिस्टम

कौन-कौन से देशो के पास रॉकेट Reusable टेक्नोलॉजी है

विश्व मे केवल अमेरिका की कंपनी स्पेस एक्स के पास रॉकेट Reusable टेक्नोलॉजी है जिसका सफल परीक्षण वर्ष 2018 में किया गया था। भारत ने अभी इस टेक्नोलॉजी का परीक्षण एक प्रोटोटाइप बनाकर किया है ,जो कि पूर्णतः सफल रहा है, भविष्य में भारत भी राकेट Reusable टेक्नोलॉजी का विकास कर लेगा।

ISRO Chairman Name List (Since 1969 to 2023)

  1. विक्रम अमिताभ (1969-1971)
  2. प्रो. उर्फना जयरामन (1972-1984)
  3. प्रो. सतीश धवन (1984-1991)
  4. कोट्टयम विश्वनाथान (1991-1994)
  5. प्रो. विजय राघवान (1994-1999)
  6. कुरुमबा रामनाथ (1999-2003)
  7. प्रो. माधव गोविंद कार्तिक (2003-2009)
  8. प्रो. के राधाकृष्णन (2009-2014)
  9. एस. एच. शर्मा (2014-2016)
  10. एस. के. शिवन (2016-2021)
  11. डॉ. के सिवान (2021-2022)
  12. सोमनाथ भारती (2022- वर्तमान)

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