ऑपेरशन कुकी मॉन्स्टर के तहत 17 देशो की पुलिस ने सील किया दुनिया की सबसे बड़ी साइबर क्राइम डार्क वेब साइट "जेनेसिस मार्केट"
Cyber Security की दृष्टि से 17 देशों की पुलिस एक साथ मिलकर साइबर क्राइम करने वाली डार्क वेबसाइट जिनेसिस को सील कर दिया है, यह वेबसाइट लोगो के पर्सनल डाटा को चुराकर उनका लैपटॉप लॉक कर देती थी फिर उसे अनलॉक करने के लिए पैसों की डिमांड करती थी ।
BCC के मुताबिक जेनेसिस मार्केट के पास बिक्री के लिए 2 मिलियन लोगो के 80 मिलियन क्रेडेंशियल और डिजिटल फिंगरप्रिंट थे।
फ़ोटो साइबर सुरक्षा |
सुरक्षा एजेंसियों ने 200 से अधिक जगहों पर छापेमारी कर के लगभग 120 लोगो को गिरफ्तार किया है
साइबर अपराधी जेनिसिस के जरिये रैमसमवेयर अटैक करते थे
नेशनल इकनोमिक क्राइम सेंटर के डायरेक्टर रोबर्ट जोंस ने कहा कि- जेनिसिस को यूज़ करने के लिए आपको शातिर साइबर अपराधी होने की जरूरत नही थी अगर आपको सर्च इंजन इस्तेमाल करना आता है तो आप आसानी से क्राइम कर सकते है।
जेनिसिस मार्केट का इस्तेमाल ज्यादातर धोखाधड़ी के लिए किया जाता था साइबर क्रिमिनल इसका प्रयोग रैम्सम वेयर के अटैक के लिए जेनेसिस का इस्तेमाल करते थे।
Today, the #FBI successfully disrupted Genesis Market, a dark market allowing users to commit cybercrimes by targeting victims worldwide and selling their stolen digital fingerprints. Read more about this collective effort at https://t.co/ROptLN7Jdx pic.twitter.com/JyqQEO0RI8
— FBI (@FBI) April 5, 2023
ग्लोबल साइबर क्राइम डैमेज कॉस्ट-
भारत की GDP का तीन गुना ज्यादा है साइबर क्राइम मार्केट और यह वर्ष 2025 तक $10.5 ट्रिलियन तक पहुच जाएगा।
- $6 ट्रिलियन USD एक साल में
- $500 बिलियन USD एक महीने में
- $115 बिलियन USD एक सप्ताह में
- $16.4 बिलियन USD एक दिन में
- $684 मिलियन USD एक घंटे में
- $11.4 मिलियन USD एक मिनट में
- $190000 USD एक सेकंड में (सोर्स सायबर सिक्योरिटी वेंचर्स)
देखा जाए तो साइबर क्राइम मार्केट इतना बड़ा है कि वह केवल एक महीने दुसरो को नुकसान पहुँचा कर इतना व्यापार कर लेता है जितना कि भारतीय कंपनिया एक साल में व्यापार करती है।
कब बनी थी जेनिसिस मार्केट?
जेनिसिस मार्किट 2017 में अस्तित्व में आयी थी और यह बिल्कुल आम वेबसाइट की तरह दिखती थी जिसे डार्क वेब के साथ ओपन वेब में भी इस्तेमाल किया जाता था यूजर यहाँ पर इंग्लिश भाषा मे इंटरैक्ट करता था
यहाँ पर पैसे देकर दूसरे लोगो के फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, नेटफ्लिक्स के पासवर्ड खरीदे जाते थे, और अगर लोग अपना पासवर्ड बदल भी देते थे तो इसकी जानकारी जेनेसिस मार्केट को रहती थी,और यह पर लोगो की लोकेशन से जुड़ी जानकारी भी बेची जाती थी।
- जेनिसिस मार्केट में लोगो के IP एड्रेस, लॉगिन डिटेल और फिंगरप्रिंट बनाने वाला डेटा बेचा जाता था।
- साइबर अपराधी यहाँ पर 1 डॉलर की कम कीमत में लोगो की डिटेल खरीद करते थे और फिर फ्रॉड करते थे।
- इन डिटेल्स के ज़रिए बैंकिंग और शॉपिंग डीटेल्स आसानी से हैक कर लेते थे।
- आसान भाषा मे कहे तो साइबर अपराधी यहाँ से लोगो का पासवर्ड खरीदकर उनका एकाउंट लॉक कर देते थे।
- और बाद में अनलॉक करने के लिए पैसों की डिमांड करते थे।
डार्क वेब क्या है?
डार्क वेब की बात को करने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि इंटरनेट कुल तीन हिस्सो में बंटा हुआ है
सरफेस वेब :-
- इंटरनेट का केवल 5 % हिस्सा ही सरफेस वेब के अंतर्गत आता है,
- यानी वो चीजे जिसे हम आसानी से गूगल के माध्यम के माध्यम से एक्सेस कर सकते है।
- जैसे- फेसबुक, यूट्यूब,
डीप वेब :-
- इस वेब पर डायरेक्ट नही पहुँचा जा सकता है डीप वेब के किसी भी डॉक्यूमेंट तक पहुचने के लिए उसके URL एड्रेश पर जाकर लॉगिन करना होता है
- जिसके लिए यूजर नेम और पासवर्ड की जरूरत होती है।
- जैसे- बैंक लॉगिन, ब्लॉगिंग वेबसाइट आदि।
डार्क वेब :-
- ये इंटरनेट सर्चिंग का ही हिसा है लेकिन इन्हें सामान्य रूप से सर्च इंजन पर ढूंढा नही जा सकता है,
- इस तरह की वेबसाइट को खोलने के लिए स्पेशल ब्राउज़र की आवश्यकता होती है जिसे टॉर् कहते है।
- डार्क वेब वेबसाइट को टार एन्क्रिप्टेड टूल की मदद से छुपा दिया जाता है जिससे सर्च इंजन की पकड़ में डार्क वेब नही आता है।
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