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1991 Indian Economic Crisis in hindi: 1991 भारत ने जब गिरवी रखा था अपना सोना! पूरी केस स्टडी

 1991 Indian Economic Crisis: जब भारत ने अपना सोना गिरवी रखा था, पूरी केस स्टडी

भारत जो आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है लेकिन भारत को इस अवस्था मे बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था जहाँ भारत एक समय ऐसा था कि उस समय दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कर्जदार देश हुआ करता था। 

भारत के ऊपर 72 अरब डॉलर का कर्ज था, भारत ब्राजील और मैक्सिको के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कर्जदार देश हो गया था ,स्तिथि ऐसी थी कि भारत को अपने घर मे सोने को गिरवी रखना पड़ा था।

1991 Indian Economic Crisis in hindi
1991 Indian Economic Crisis in hindi



जब 1991 में ये खबर बाहर निकल के सामने आई कि भारत ने अपना 21000 kg सोना स्विट्जरलैंड की बैंक में दूसरी बार  गिरवी रखने जा है और उसके एवज में भारत को जो पैसे मिलेंगे उस पैसे से भारत अपना तेल का बिल चुकाएगा।

तब भारतीयो की लगा कि हमारा मान संम्मान अब गिरवी होने वाला है फिर उस समय भारत सरकार ने जिसके तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव थे उनके नेतृत्व में , जिनकी सरकार में डॉ. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री हुआ करते थे।

एक आर्थिक सुधार किया जिसे LPG रिफॉर्म यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन ,ग्लोबलाइजेशन के नाम जाना जाता है , भारत ने अपने इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट की रणनीति को बदला, सब्सिडी को घटा दिया ,प्राइवेटाइजेशन शुरू किया, यानी मार्केट को पूरा खुला छोड़ दिया ,विदेशी कंपनियों पर टैक्स कम दिया और इसी LPG रिफॉर्म का नतीजा निकला कि भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन चुका है।

क्या आज भारत के हालात श्री लंका जैसे होते..

हा ,अगर भारत अपनी नीतियों में परिवर्तन ना करता तो भारत के हालात 31 साल पहले श्रीलंका लंका जैसे होते। जिस तरह के हालात इन दिनों श्रीलंका और पाकिस्तान में हैं बिल्कुल उसी तरह के हालात भारत में 1991 में थे।

1991 कैसे थे भारत के आर्थिक हालात

1991 का जून का महीना भारत के लिए इतना कष्ट पूर्ण था कि भारत सरकार यह सोच रही थी कि अब वह क्या करें क्योंकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था यह कहा जाए कि लगभग $1 अरब डॉलर तक विदेशी मुद्रा भंडार बचा था।

जिससे भारत मात्र 20 दिनों के लिए तेल खरीद सकता था। 1991 भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मुख्य रूप से गल्फ कंट्रीज में काम करने वाले भारत के कामगार थे उस समय गल्फ कंट्रीज मैं युद्ध के संकट से जिसकी वजह से भारतीय कामगार वहां से वापस आ गए और भारत को बड़े विदेशी मुद्रा का नुकसान हुआ।

अब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार निचले स्तर पर आ गया महगाई अपने चरम पर थी राजस्व घटा बढ़ा हुआ था और चालू खाता घाटा डबल डिजिट में पहुच गया था। देश मे राजनीतिक और धार्मिक अस्थिरता थी।

देश मे आम चुनाव होने तक चद्रशेखर की केयरटेकर सरकार थी और इसी बीच 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्त्या कर दी गयी। रुपये का अवमूल्यन होने लगता है और रुपये की वैल्यू 20% तक नीचे आ जाती है। ऐसी स्तिथि को देखते हुए विदेशी कंपनियों ने कहा कि हम भारत को कर्ज नही देंगे और उनके साथ व्यापार नहीं करेंगे क्योंकि भारत कर्ज चुका पाने की स्तिथि में नही था

क्या कारण थे जिससे भारत की इकोनॉमी इतने पीछे चली गयी थी

भरत की भारत की इकोनामी इतने पीछे जाने का मुख्य कारण था  भारत के लोगों की मानसिकता।
  • क्योंकि 1947 में आजाद होने के बाद भारतीय लोगों की मानसिकता यह बन गई थी कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी दूसरी कंपनी को आने नहीं देंगे लोगों के अंदर गुलामी का डर बस चुका था।
  • भारत रूस के जैसे अपने देश के अंदर साम्यवादी नीति लागू करता था यानी भारत के हर उद्योग धंधों की शुरुआत वहां की सरकार करेगी वहां की बैंकों का संचालन वहां की सरकार द्वारा होगा  जो भी काम होंगे वह सरकारी होंगे।
  • इसी राह पर चलते हुए भारत में भारत सरकार ने अनेक उद्योग धंधे खोलें प्लांट लगाए, सरकारी कंपनियां खोली ,बैंकों को सरकारी किया और सरकार द्वारा इन सब चीजों पर इतना खर्च कर दिया गया कि भारत के पास तेल खरीदने के लिए बिल्कुल विदेशी मुद्रा भंडार बचा ही नहीं जिस कारण भारत की इकोनॉमि गर्त में चली गई हर चीज पर सरकार का नियंत्रण हो गया और भारत को विदेशी निवेश ना के बराबर मिलने लगे बड़े-बड़े कंपनियां का भारत में आते ही उनका विरोध शुरू हो जाता था। 
  • क्योंकि भारतीय लोगों में ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम पर डर का माहौल था यह भी कंपनी हम पर शासन करने लगेगी। 
  • भारत ने नीति बनाई थी कि हम अपने उद्योगपतियों से अधिक टैक्स लेकर गरीब जनता में बांट देंगे 1991 में पहुंचते-पहुंचते हालात बहुत ज्यादा खराब हो गए थे इसलिए देश की मौजूदा सरकार ने LPG रिफॉर्म किया कि अब हम उदारीकरण करेंगे, वैश्वीकरण पर जोर देंगे।

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