रवीन्द्र नाथ टैगोर का शांतिनिकेतन जानिए इसके इतिहास एवं स्थापना के बारे में

रविंद्र नाथ टैगोर का शांतिनिकेतन: शांतिनिकेतन कोलकाता से उत्तर पश्चिम की ओर लगभग 100 मीटर दूर है, यह स्थान बर्दवान साहिबगंज लूप लाइन पर बोलपुर स्टेशन से डेढ़ मील दूर है.

शांति निकेतन की स्थापना गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के पिता महर्षि दवेंद्र नाथ ने की थी। महर्षि देवेंद्र नाथ जी ब्रह्म समाजी थे और अपनी साधना के लिए एक शांत स्थान की खोज में थे, और उसको चुनाव करने के बाद उन्होंने इस स्थान पर अनेक वृक्ष लगाए आज इस स्थान पर अनेक आम्रकुंजा की छटा निराली है, और चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है इस स्थान पर अपार शांति मिलती है इसलिए इसका नाम शांतिनिकेतन रखा गया.

रविंद्र नाथ टैगोर पहली बार शांतिनिकेतन कब गए?

रविंद्र नाथ टैगोर जब 11 वर्ष के थे तो सर्वप्रथम अपने पिता के साथ शांतिनिकेतन गए, अपनी प्रथम अनुभूति के विषय में उन्होंने लिखा है कि "यदि मुझे बाल काल मेंयह सुयोग नहीं मिला होता तो मेरा जीवन नितांत असम्पूर्ण रह जाता।"

  • शांतिनिकेतन की प्राकृतिक छवि ने बालक रवींद्रनाथ का ध्यान अत्यधिक आकृष्ट कर लिया था।
  • टैगोर अपनी जमीनदारी की देखभाल के लिए गांव में जाते तो ग्रामीणों  के दुख-दर्द सुनते और उनकी पीड़ा का स्वयं अनुभव करते।
  • अज्ञानता में जकड़ी हुई मानवता को देखकर टैगोर का ह्रदय बिकल हो उठा और वह कुछ करने के लिए छटपटा ने लगे सन उन्नीस सौ एक में उन्होंने शांतिनिकेतन में एक विद्यालय की नींव रख दी। 
  • उस समय केवल 5 छात्र थे गुरुदेव टैगोर ने जब अपना ध्यान शिक्षा में सुधार की ओर लगाया वे प्राचीन गुरुकुल  प्रणाली की विशेषताओं की ओर आकृष्ट थे।
  • और वर्तमान वैज्ञानिक प्रगति से उसका समन्वय करना चाहते थे। 
  • उन्होंने अपने विद्यालय में विद्यार्थी को पूर्ण स्वतंत्रता दी उनका विचार था कि छात्र को वही काम करने को कहा जाए जिसमें उसे आनंद आए जब तक छात्र अपनी इच्छा से कार्य नहीं करता तब तक उसे आनंद नहीं मिलता।
  • अध्यापक का कार्य केवल प्रेरणा देना होना चाहिए इसके मध्य में स्थापित शांतिनिकेतन विद्यालय में हुए अपने विचारों को मूर्त रूप देने लगे गुरु का निर्देश पाते ही छात्र वृक्ष के नीचे वृक्ष की छाया पर अपनी इच्छा अनुसार पढ़ाई करते थे गुरु और शिष्य वहां एक परिवार की तरह रह रहे थे।
  • 5 छात्रों की संख्या बढ़ते बढ़ते हजारों तक पहुंच गई ।
  • अतः आर्थिक समस्या भी बढ़ती गई गुरुदेव के सामने भी आर्थिक संकट से होकर विद्यालय गुजरा गुरुदेव ने समय समय पर विद्यालय की सहायता के लिए विभिन्न उपाय किए
  • नोबेल पुरस्कार की अपनी सारी धनराशि को उन्होंने इसी में लगा दिया।
  • विदेशों की यात्रा की और शांति निकेतन के प्रति समाज की सहानुभूति अर्जित की।
  • अब उनका ध्यान उच्च शिक्षा की ओर गया । 
  • उच्च शिक्षा को वो आध्यात्मिक उन्नति का साधन मानते थे ।
  • उन्होंने 6 मई 1922 को शांति निकेतन में ही विश्व भारती की स्थापना की विश्व भारती की स्थापना की उन्होंने तीन उद्देश्य रखें।


विश्व भारती की स्थापना के तीन मुख्य उद्देश्य:

1. पूर्व और पश्चिम की भिन्न संस्कृतियों को उनकी मौलिक एकता के आधार पर टिकट लाना ।
2. इसी एकता के आधार पर पश्चिम के विज्ञान और संस्कृति के निकट पहुंचना।
3. गांव के जीवन में सुख समृद्धि लाने के लिए ग्रामीण पुनर्रचना संस्थान की स्थापना करना।


विश्व भारती को केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में दर्जा:

  • विश्व भर्ती में 100 शिक्षा है छात्रों और छात्राओं के रहने की व्यवस्था वहीं पर है।
  • जाति संप्रदाय रूपरंग के आधार पर कोई भेद नहीं है सभी को मानव के रूप में देखा जाता है।
  • भारतीय संसद में सन 1951 में अपने 29 वे अधिनियम द्वारा विश्व भारती को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्रदान की है। 
  • तब से यह विश्वविद्यालय के रूप में कार्य कर रहा है जिससे देश विदेश से अनेक छात्रा आकर उच्च अध्ययन करते हैं।


विश्व भारती विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी कैसी है?

विश्व भारती में एक विशाल पुस्तकालय है जिसमें,

  • विभिन्न भाषाओं के लगभग 200000 ( दो लाख) पुस्तकें हैं।
  • टैगोर के जीवन तथा उनकी कृतियों के अध्ययन की सुविधा के लिए एक रबींद्र  सदन की स्थापना सन 1942 में की गई है
  • जो टैगोर स्मारक संग्रहालय के रूप में है। 
  • और इसमें टैगोर लिखित सभी पुस्तकें संपादित पत्र पत्रिकाएं एवं अन्य सामग्रियां हैं टैगोर के विषय में जो कुछ लिखा गया है।
  • उनके पत्र और उनके नाम पत्र उनकी पांडुलिपि या सन 1912 से समाचार पत्रों की टैगोर विशेष सूचनाओं की कतरने संग्रहित हैं।
  • विश्व भारती में अनेक विभाग हैं उन्हें भवन कहा जाता है।


विद्या भवन :

बीए ऑनर्स का 3 वर्ष का पाठ्यक्रम 2 वर्ष का M.A. का पाठ्यक्रम और पीएचडी के लिए शोध व्यवस्था।

विनय भवन:

अध्यापक प्रशिक्षण विभाग B.Ed M.Ed एवं शिक्षा शास्त्र में पीएचडी की व्यवस्था।

कला भवन :

कला तथा शिल्प का 2 वर्ष का कोर्स मिस मिट्टी के बाद 4 वर्ष का डिप्लोमा कोर्स 2 वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स में केवल स्त्रियों का प्रवेश इस भवन में अपना संग्रहालय पुस्तकालय एवं एक बड़ा हाल है।

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