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भारत मे कैसी थी? प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली

प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली आज के दौर में भी भारत में कई स्थानों पर गुरुकुल शिक्षा संस्थान हैं। इन संस्थानों में शिष्य को दोपहर में अधिकतम समय धर्म और अन्य कला शिक्षा मिलती है। ये संस्थान वैदिक विद्या शिक्षा के अलावा योग, प्राणायाम, अध्यात्म, संगीत, इतिहास, कला आदि के अध्ययन का भी मौका देते हैं। इन संस्थानों में शिष्य को फ्री शिक्षा दी जाती है। उसे खान-पान और रहने के लिए सभी व्यवस्थाएं मुफ्त में उपलब्ध होती हैं। शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए यह संस्थान शिक्षा  कौशल पर जोर देता है।


What is Gurukul |गुरुकुल क्या है ?

भारत में गुरुकुल शिक्षा का प्रथम प्रयास वेद-पुराण काल में हुआ था। इसके अलावा मौर्य सम्राट अशोक के समय में भी गुरुकुल के रूप में शिक्षा के केंद्र बने थे। उस समय शिष्य गुरु के घर में रहकर उनसे शिक्षा प्राप्त करते थे।

    वैदिक क़ालीन शिक्षा व्यवस्था आजकल की भांति सुव्यवस्थित थी 1 हजार ईसा पूर्व परिवार ही शिक्षा का प्रमुख केंद्र बने थे, गृह  विद्यालयों में ही बालकों को साहित्यिक तथा व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाती थी । इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत शिक्षक ही प्राचीन शिक्षा प्रणाली के रीढ़ की हड्डी थे । व्यक्तिगत शिक्षक अप विद्रता तथा प्रसिद्धि के कारण विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित करते थे । 


    भारत मे कैसी थी? प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली
    गुरुकुल शिक्षा

    प्रागैतिहासिक काल में विभिन्न वेदों के अनुयायियों ने अपनी अलग - अलग शैक्षिक संस्थाओं निर्माण कर लिया था ये शैक्षिक संस्थाएँ ' चारण ' (charan) के नाम से प्रसिद्ध थीं , किन्तु ये ' चारण अव्यवस्थित शिक्षा संस्थाएं थीं । आश्चर्य का विषय यह है कि इनको व्यवस्थित शैक्षिक संस्थाओं में परिवर्तित करने लिए कभी भी प्रयत्न ही नहीं किया गया । प्रत्येक ब्राह्मण अपने में स्वयं एक शैक्षिक संस्था बना ।

    शिक्षा पूर्णरूप से व्यक्तिगत प्रयास थी । यदि किसी शिक्षक के अधीन विद्यार्थियों की संख्या बढ़ जाती थी तो वह यह तो किसी सहायक शिक्षक अथवा किसी ज्येष्ठ छात्र को सहायता के लिए रख लेता था । गुरु के संरक्षण में केवल 5 या 7 विद्यार्थी ही रहते थे । इस प्रकार प्राचीन शिक्षा प्रणाली पूर्णरूप वैयक्तिक थी । उस समय सामूहिक शिक्षा का प्रचार - प्रसार आजकल की भाँति नही था । 

    प्राचीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति का परिचय|Introduction to the Ancient Gurukul Education System

    बालक की प्रारम्भिक शिक्षा अपने परिवार में ही विद्या संस्कार के उपरान्त ही आरम्भ होती थी । यह संस्कार पांच वर्ष की अवस्था में होता था जिस उपरान्त बालक की शिक्षा क्षेत्र में पदार्पण कराया जाता था । प्रारम्भिक शिक्षा के अन्तर्गत बालक को लिखना - पढ़ना तथा गणना का ज्ञान कराया जाता था । प्रारम्भिक शिक्षा सामान्य रूप से में ही प्रदान की जाती थी । ‘ उपनयन संस्कार ' के बाद उच्च शिक्षा के लिए बालकों को गुरुकुल में प्रवेश लेना पड़ता था । 

    गुरुकुल का उपनयन संस्कार कैसे होता था?

    वैदिककालीन शिक्षा में विद्यार्थी को ' ब्रह्मचारी ' की संज्ञा प्रदान की जात थी । विद्यार्थी जीवन ' उपनयन संस्कार ' के बाद आरम्भ होता था । ' उपनयन ' का शाब्दिक अर्थ है , ' गुरु पास ले जाना ' यह शिक्षा का प्रारम्भ उपनयन के पश्चात् ही विद्यार्थी ' ब्रह्मचारी ' कहलाता था । गुरुकुल में प्रवेश पाने के पूर्व ही ' उपनयन ' का कार्य सम्पन्न होना आवश्यक माना जाता था । उपनयन संस्कार तीन वर्षों के लिए आवश्यक था । 

    डॉ ० पी ० एन ० प्रभु के शब्दों में ' हिन्दू परिवार में ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य वर्ण से सम्बन्धित प्रत्येक बालक कुछ धार्मिक क्रियाओं एवं संस्कारों के द्वारा शिक्षा के के में प्रवेश करता था , जिन्हें उपनयन संस्कार के अन्तर्गत रखा जाता है । इस संस्कार के द्वारा ही बालक भौतिक शरीर के स्थान पर आध्यात्मिक शरीर प्राप्त करता था । एक प्रकार से उसका दूसरा जन्म होता था । अब वह ' द्विज ' अथवा ' ब्रह्मचारी ' कहलाने लगता था । 

    डॉ. एफ .केई के शब्दों में , " उपनयन संस्कार वह संस्कार था जिसके द्वारा तीन वर्णों यथा ब्राह्मण , क्षत्रिय एवं वैश्य का बालक विद्यार्थी जीवन में प्रवेश करता था। प्रत्येक वर्ण के लिए विद्यारम्भ की विभिन्न आयु निर्धारित की गई । वह ब्राह्मण के लिए 8 वर्ष, क्षत्रिय के लिए 11 वर्ष, और वैश्य के लिए 12 वर्ष निश्चित की गई थी और आवश्यक पड़ने पर यह आयु 16 , 22 और 24 वर्षों तक क्रमशः बढ़ाई जा सकती थी । किन्तु इसके बाद कोई भी युवक किसी गुरु द्वारा शिष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं था ।

    गुरुकुल में प्रवेश

    उपनयन संस्कार के बाद बालक को गुरु पास से जाया जाता गुरु उस बालक से पूछता था , तुम किसके ब्रह्मचारी हो? बालक आपका कहकर अपनी गुरु को समर्पित कर देता था । 

    • आचार्य तब उसे शुद्ध करता था कि तुम इन्द्र , सूर्य तथा अग्नि शिष्य हो , क्योंकि वे वैदिक काल के शक्तिशाली देवता थे । 
    • इसके पश्चात् आचार्य दाहिने हाथ शिष्य को पकड़ता था और बतलाता था कि वह ऐसा सावित्री के आदेश से कर रहा है । 
    • वह  शिष्य के हृदय को स्पर्श करता था और प्रार्थना करता था कि उसके तथा शिष्य के बीच स्थान रूप से सौहार्द्रता की भावना रहे । 
    • इसके बाद शिष्य को वैदिक अध्ययन में गायत्री मंत्र के पाठ द्वारा प्रवेश कराया जाता था । 
    • गायत्री मंत्र सीखने के उपरान्त विद्यार्थी को एक दण्ड प्रदान कि जाता था , जो कि ज्ञान के मार्ग पर चलने वाले यात्री का प्रतीक था । 
    • दण्ड को ग्रहण करके प्रार्थना करता था कि वह ज्ञान प्राप्ति के कठिन मार्ग का अनुसरण करते हुए अपने गंतव्य तक पहुँच सके, प्रत्येक दण्ड प्राप्त करने वाले से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह सजग प्रहरी के समान वेदों की मर्यादा की रक्षा करेंगे।

    गुरुकुल में पढ़ाये जाने वाले विषय

    गुरुकुल में स्पेस, साइन्स, नेविगेशन, एस्ट्रोनॉमी, जियोग्राफी, माइनिंग जैसे 51 विषयों को पढ़ाया जाता था. यहाँ पर उन विषयों की सूची दी गयी है-

    1. अग्नि विद्या ( Metallergy )
    2. वायु विद्या ( Flight ) 
    3. जल विद्या ( Navigation ) 
    4. अंतरिक्ष विद्या ( Space Science ) 
    5. पृथ्वी विद्या ( Environment) 
    6. सूर्य विद्या ( Solar Study ) 
    7. चन्द्र व लोक विद्या ( Lunar Study ) 
    8. मेघ विद्या ( Weather Forecast ) 
    9. पदार्थ विद्युत विद्या ( Battery ) 
    10. सौर ऊर्जा विद्या ( Solar Energy ) 
    11. दिन रात्रि विद्या ( Day-Night Studies )
    12. सृष्टि विद्या ( Space Research ) 
    13. खगोल विद्या ( Astronomy) 
    14. भूगोल विद्या (Geography ) 
    15. काल विद्या ( Time ) 
    16. भूगर्भ विद्या (Geology and Mining ) 
    17. रत्न व धातु विद्या ( Gems and Metals )  
    18. आकर्षण विद्या ( Gravity ) 
    19. प्रकाश विद्या ( Solar Energy ) 
    20. तार विद्या ( Communication ) 
    21. विमान विद्या ( Plane ) 
    22. जलयान विद्या ( Water Vessels ) 
    23. अग्नेय अस्त्र विद्या ( Arms and Amunition )
    24. जीव जंतु विज्ञान विद्या ( Zoology Botany ) 
    25. यज्ञ विद्या ( Material Science)
    26. वैदिक विज्ञान ( Vedic Science )
    27. वाणिज्य ( Commerce ) 
    28. कृषि (Agriculture ) 
    29. पशुपालन ( Animal Husbandry ) 
    30. पक्षिपालन ( Bird Keeping ) 
    31. पशु प्रशिक्षण ( Animal Training ) 
    32. यान यन्त्रकार ( Mechanics) 
    33. रथकार ( Vehicle Designing ) 
    34. रतन्कार ( Gems ) 
    35. सुवर्णकार ( Jewellery designing ) 
    36. वस्त्रकार ( Textile) 
    37. कुम्भकार ( Pottery) 
    38. लोहकार ( Metallergy )
    39. तक्षक ( Guarding )
    40. रंगसाज ( Dying ) 
    41. आयुर्वेद ( Ayurveda )
    42. रज्जुकर ( Logistics )
    43. वास्तुकार ( Architect)
    44. पाकविद्या ( Cooking )
    45. सारथ्य ( Driving )
    46. नदी प्रबन्धक ( Water Management )
    47. सुचिकार ( Data Entry )
    48. गोशाला प्रबन्धक ( Animal Husbandry )
    49. उद्यान पाल ( Horticulture )
    50. वन पाल ( Horticulture )
    51. नापित ( Paramedical )

    भारत के राज्यो में गुरुकुल शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान

     इनमें से कुछ प्रसिद्ध संस्थान हैं जैसे कि- 

    • संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय (उत्तराखंड)
    • गुरुकुल कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
    • गुरुकुल अंबाजी (गुजरात)
    • महर्षि पतंजलि गुरुकुल पीठम (हरियाणा)
    • शांति कुंज वेद प्रथमिक विद्यालय (उत्तर प्रदेश)
    • आर्य समाज वेद पाठशाला

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